कहते हैं आमतौर पर मुंबई में लोग दिसंबर के महीने में पसीना पोंछते नजर आते थे, लेकिन इस बार मौसम ने ऐसी करवट ली कि नये साल में न्यूनतम तापमान ने पिछले एक दशक का रिकॉर्ड तोड़ दिया। देश की आर्थिक राजधानी में साल की शुरुआत में तापमान 15 से लेकर 13 डिग्री सेल्सियस तक जा पहुंचा। कहा जा रहा है कि मुंबई वाले इस तापमान के लिये नहीं बने हैं। सोशल मीडिया में मुंबई की ठंड को लेकर खूब फिकरे कसे जा रहे हैं और लोग गर्म कपड़े तलाश रहे हैं। केवल मुंबई के मौसम की तल्खी ही चर्चा में नहीं है, पूरा उत्तर भारत मौसम की करवट से दो-चार रहा। लुढक़ते पारे ने लोगों की तमाम मुश्किलों में इजाफा कर दिया।
गरीब को तो मौसम की तल्खी झेलनी ही होती है, लेकिन अबकी बार अमीर भी परेशान हैं। वजह है देश में कोरोना संकट की तीसरी लहर का होना। ठंड लगने से होने वाला सर्दी-जुकाम शक पैदा कर देता है कि कहीं कोरोना की चपेट में तो नहीं आ गये। दरअसल, दोनों के प्रारंभिक लक्षण मिलते-जुलते जो हैं। यूं तो सर्दी में अलाव तापने की तस्वीरें पूरे देश से आती रही हैं लेकिन मुंबई में सार्वजनिक स्थलों में ऐसा दृश्य अनूठा ही कहा जायेगा। दरअसल, मुंबई की ठंड की वजह उत्तर भारत में पड़ी ज्यादा ठंड को बताया जा रहा है, लेकिन महाराष्ट्र में कई जगहों पर बारिश के साथ ओले पडऩे के भी समाचार मिले थे, जिसका प्रभाव मुंबई के तापमान पर पड़ा। लेकिन यह तय है कि देश-दुनिया मौसम में जो अप्रत्याशित उतार-चढ़ाव महसूस कर रही है, उसके मूल में कहीं न कहीं ग्लोबल वार्मिंग का संकट भी है। मौसम के इस तेवर का असर पूरी दुनिया में है। यहां तक कि मध्यपूर्व के रेगिस्तानी इलाकों में बर्फबारी की खबरें आ रही हैं। पाकिस्तान के एक हिल स्टेशन में पिछले दिनों हुई अप्रत्याशित बर्फबारी में 22 लोग कारों में ही दम घुटने से मर गये।
निस्संदेह देश के अनेक हिस्सों में ठंड की तल्खी रक्त जमाने वाली है जो कि सामान्य मौसम-चक्र से अलग है। पहाड़ी राज्यों में हुई अप्रत्याशित बर्फबारी ने मैदानी इलाकों में सामान्य जीवन को भी बाधित किया है। वह भी जब कोरोना का नया वेरिएंट ओमीक्रोन देश में लाखों लोगों को रोज अपनी चपेट में ले रहा है, ऐसे में मौसम की तल्खी ने दोहरी चिंता बढ़ा दी है। यूं तो ठंड और बारिश इस मौसम में सामान्य बात है लेकिन इसकी तीव्रता परेशान करने वाली है, जिसने उत्तर भारत के राज्यों में तापमान में अप्रत्याशित कमी की है। मौसम विज्ञानी बता रहे हैं कि मौसम की तल्खी की एक वजह पश्चिमी विक्षोभ भी है, जिससे उत्तर-पश्चिमी भारत में अधिक बारिश हुई और पारा लुढक़ा। इसके मूल में अरब सागर के ऊपर अधिक नमी के क्षेत्र का विकसित होना रहा। इस हवा के मध्य भारत की ओर उन्मुख होने से बारिश की स्थितियां बनी हैं। जब ये हवायें हिमालयी राज्यों से चलीं तो मैदानी इलाकों में ठंड का प्रकोप बढ़ा है, जिसके अनुकूल लोगों को खुद को ढालने में परेशानी का सामना करना पड़ा है। इस संकट का सबसे ज्यादा शिकार समाज का वंचित तबका ही होता है, जिसके नसीब में छत तक नहीं है। हाशिये के लोगों को राहत देने की बातें तो सरकारें करती हैं, लेकिन हकीकत में इन्हें किस सीमा तक मदद मिलती है यह एक यक्ष प्रश्न है।
खासकर यह स्थिति तब विकट हो जाती है जब देश एक महामारी के दौर में हो। देश में चुनाव केंद्रित राजनीति के शोर में समाज का वंचित वर्ग भगवान भरोसे ही नजर आता है। हाल-फिलहाल ठंड से जल्दी राहत मिलने की भी संभावना नजर नहीं आती। ऐसे में समाज के संपन्न तबके व स्वयं सेवी संस्थाओं का भी दायित्व बनता है कि मौसम की तल्खी झेलने वाले वंचित समाज की मदद को आगे आयें। स्थानीय प्रशासन की भी जिम्मेदारी है कि बेघरों के लिये बनाये गये रैन बसेरों में रहने व खाने की पर्याप्त व्यवस्था हो। महामारी के दौर में यह चुनौती बड़ी है।