निकृष्ट से तुलना कर श्रेष्ठ बनने की कला
सौरभ जैन
सौ रुपये से ऊपर का सस्ता पेट्रोल भरवाने के बाद सब्जी मंडी से ढाई सौ ग्राम इम्पोर्टेड टमाटर लेकर घर लौटने के बाद न्यूज चैनल पर खबर वाचिका महोदया पाकिस्तान में महंगाई पर खबर दिखाती है तो सारा दुख-दर्द पल भर में छूमंतर हो जाता है। सौ जड़ी-बूटी वाले बाम की तुलना में पाकिस्तान वाली खबरें दर्दमंद लोगों के जीवन में दर्द निवारक का काम करती हैं। गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी और महंगाई जैसे मुद्दों पर पाकिस्तान की खबर दिखाने से हम सीधा विकसित राष्ट्र की श्रेणी में जा पहुंचते हैं। अब तक तो यह ही सुनते आए थे कि तुलना और प्रतियोगिता अपने से बेहतर के साथ की जाती है। किंतु निकृष्ट से तुलना कर श्रेष्ठ बनने की कला भारतीय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की देन है। आपका बच्चा यदि परीक्षा में फेल होता है तो उसे डांटें नहीं बल्कि उसे अशिक्षित जन प्रतिनिधियों का उदाहरण देते हुए उसकी हौसला अफजाई करें। यदि वह घर से पैसे चुरा रहा है तब भी यह सोच लें कि पैसे ही तो चुरा रहा है कोई टीवी, फ्रिज तो नहीं बेच रहा है। ऐसा करने से आपको अपने में एक न्यूज एंकर नजर आएगा।
वैसे इस युग में राजनीति की खबरों को खबरों की राजनीति ने थाम रखा है। किसी समय हम सम्मोहन के किस्से सुना करते थे, फिल्मों में धागे से बंधे छोटे से कांच के गोले को आंखों के आगे चक्कर लगवा कर यह अहसास करवाया जाता था कि ऐसा करने से सम्मोहित किया जा सकता है। न्यूज चैनल वह हाथ है, जिसने खबरों के धागे को पकड़े रखा है और पाकिस्तान वह कांच का गोला है जो हम दर्शकों की आंखों के आगे लगातार घुमाया जा रहा है। जैसे ही हमारे देश के किसी मुद्दे पर लोगों में चेतना का संचार होने ही वाला होता है वे तुरंत पाकिस्तान की खबरें जोर-जोर से सुनाने लगते हैं। हमारे न्यूज एंकरों के आगे वशीकरण वाले बाबाओं का धंधा भी फेल है, अब यदि न्यूज एंकर पार्टटाइम बिजनेस के रूप में सौतन से छुटकारा, पति को वश में करना और मनचाहा प्रेम हासिल करने के व्यापार की दुकान भी साथ में चलायें तो यह धंधा हिट होने की सौ टका गारंटी रहेगी। इस देश में न्यूज चैनलों को छोडक़र सब अपने काम में लगे हैं।
अब तो प्रदूषित हवा भी पाकिस्तान से आती है, लेकिन खबरों का प्रदूषण तो इसी देश की उपज है जो लोकतंत्र के फेफड़ों के सिकुडऩे के लिए काफी है। उत्तर प्रदेश की माफिक दिल्ली वाले भी अपने यहां के प्रदूषण की जिम्मेदारी पाकिस्तान पर डाल देते तो आज बच्चे स्कूलों में इतिहास पढ़ रहे होते। अब बच्चे इस बात से कन्फ्यूज हैं कि वर्तमान की समस्याओं के लिए नेहरू जिम्मेदार है या पाकिस्तान?