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तेल उत्पादों की कर-निर्धारण नीति तार्किक बने

सुषमा रामचंद्रन

पेट्रोल और डीज़ल पर हाल में घटाई गई एक्साइज ड्यूटी स्वागतयोग्य है, किंतु यह बहुत देर से उठाया गया कदम है। इस निर्णय ने भाजपा शासित राज्यों में वैट में सापेक्ष कटौती करने का दौर शुरू किया। पंजाब को भी यह कड़वा घूंट पीना पड़ा है, जबकि अन्य गैर भाजपा राज्यों में मामला विचाराधीन है। अन्य शब्दों में कहें तो कर-उगाही हेतु पेट्रोल-डीज़ल को सोने का अंडा देने वाली मुर्गी समझ कर दोहन करने के घिसे-पिटे उपाय में केंद्र और राज्य सरकारें कुछ कमी लाई हैं। साथ ही सरकार द्वारा तेल के आपातकालीन भंडार से तेल निकालने की घोषणा से तेल के दामों में कमी होने की उम्मीदें भी जगी हैं।

पेट्रोलियम पदार्थों पर भारी कर लगाने की अगुवाई भले ही केंद्र सरकार की रही हो लेकिन राज्य सरकारें भी तगड़ा टैक्स ठोकने में पीछे नहीं रही। वहीं पेट्रोलियम उत्पाद को जीएसटी के दायरे में लाने का प्रस्ताव कभी नहीं आ पाया। केरल उच्च न्यायालय के एक फैसले के बाद बेशक जीएसटी कांउसिल को इस प्रस्ताव पर विचार करना पड़ा, लेकिन आशा के अनुरूप सबकी प्रतिक्रिया नकारात्मक रही। सरकारों को डर है कि अगर पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाया गया तो केंद्र और राज्य, दोनों को, तेल से होने वाली आमदनी में भारी कमी होगी। एक्साइज़ ड्यूटी और वैट लगाने से पहले वाले वक्त में, पेट्रोल पंप वाली खुदरा कीमतों में, इनका अंश लगभग 66 प्रतिशत हुआ करता था। इसके बरअक्स अब तेल-उत्पाद 28 फीसदी वाली जीएसटी स्लैब में हैं। इस स्तर पर भी, प्राप्त कर राज्य और केंद्र सरकारें आपस में बांटती हैं। अगर इसमें और कमी आती है तो यह उनके खजाने को बहुत भारी पड़ेगी।

फलत: भारत उन मुल्कों में से एक है जहां पेट्रोलियम उत्पादों पर कर दुनियाभर में सबसे ज्यादा है। यह दर विकसित यूरोपियन देशों के बराबर है। लेकिन हमारी देश की आर्थिकी में प्रति व्यक्ति आय विकसित देशों के मुकाबले कम है। तेल की मौजूदा कीमतें आम उपभोक्ता पर कमरतोड़ बोझ हैं, खासकर हाशिए पर आते वर्ग पर। रसोई गैस की कीमत में हुई हालिया बारम्बार वृद्धि ने ग्रामीण और शहरी, दोनों जगह, इन लोगों पर बुरी तरह चोट की है। इस संदर्भ में उज्ज्वला योजना को गिना जा सकता है कि घरों में धुआं पैदा करने वाली लकड़ी और कोयले से जलने वाली अंगीठी की जगह अब स्वच्छ ईंधन के रूप में एलपीजी ने ले ली है। लेकिन इसमें झोल यह है कि पहले मिले मुफ्त सिलेंडर के बाद इस्तेमालकर्ता के पास रिफिल भरवाने लायक पैसा नहीं होने की वजह से फिर से रिवायती ईंधन की ओर मुडऩा पड़ रहा है। गैस सिलेंडर की कीमत बढ़ाकर सरकार मुश्किलों में और इजाफा कर रही है। अध्ययन करना जरूरी होगा कि क्या रसोई गैस सिलेंडर के ऊंचे मूल्य की वजह से घरेलू उपभोक्ताओं में इसका चलन कम होने लगा है।

कहने को यह सिद्धांत गिना सकता है कि परिवहन में प्रयुक्त ईंधन पर कर बढ़ाने से न केवल इसकी खपत कम होगी बल्कि खतरनाक कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी। कुछ विकसित देश भारी भरकम टैक्स उगाहने के साथ-साथ इस राह को चुनना चाहते हैं। लेकिन भारत के परिप्रेक्ष्य में इसकी प्रासंगिकता कम ही है, जहां ऊंचे कर का नतीजा परिवहन के लिए स्वच्छ ऊर्जा चालित साधनों की ओर मुडऩे वाला नहीं हो सकता। हमारे यहां आज की तारीख में इलेक्ट्रिक (बैटरी) वाहनों की कीमत बहुत ज्यादा है। अतएव समझदारी यही होगी को पेट्रोलियम पदार्थों पर लगाए कर को धीरे-धीरे अधिक हितकारी बनाया जाए, खासकर जब दीर्घकाल में पर्यावरण-मित्र ऊर्जा स्रोत इसकी जगह लेने वाले हैं। हालांकि, यह अल्पकालीन उपाय साफतौर पर आगामी सूबाई चुनावों में वोटर को खुश करने के मद्देनजऱ है। तेल में निरंतर मूल्य वृद्धि से परोक्ष बोझ के अलावा, अपरोक्ष असर तमाम वस्तुओं की कीमतों पर चक्रवृद्धि स्वत: पड़ता है।

चुनाव के मद्देनजर पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कमी तब तक संभव नहीं होती जब तक सरकारों के पास सहनयोग्य क्षमता न हो । कोविड जनित मंदी के बाद आर्थिकी की पुन: गति पकडऩा उम्मीद से कहीं ज्यादा तेज रहा है, लिहाजा साल के पहली छमाही में परोक्ष कर उगाही में 74 फीसदी की वृद्धि दर्ज हुई है। यदि इसको निचले आधार वाला मानें, तब भी यह सूचकांक कर-प्राप्ति में सकल वृद्धि दर्शाता है। इसी तरह, जीएसटी उगाही में अक्तूबर माह में रिकॉर्ड 1.3 लाख करोड़ की आमद हुई है।

इसलिए यह समय है कि केंद्र सरकार कर के मोर्चे पर कुछ और बलिदान करे। महामारी के दौरान पेट्रोल पर 13 रुपये और डीजल पर 16 रुपये की जो अतिरिक्त एक्साइज़ ड्यूटी लगाई गई थी, उसको किश्तों में घटाने की बजाय – जैसा कि पेट्रोल (5 रुपये) और डीज़ल (10 रुपये) घटाकर किया गया है – एकमुश्त कम किया जाए। तेल क्षेत्र पर जरूरत से ज्यादा कर बोझ डालना आपातकालीन स्थिति से निपटने के फौरी उपाय के तौर पर था। अब जबकि वित्तीय परिदृश्य स्पष्टत: ज्यादा बेहतर है तो बदले हुए हालात की दरकार है पेट्रोलियम उत्पाद कर-नीति को तार्किक बनाने की।

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