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जागरूकता से प्रलोभन की राजनीति पर रोक

लक्ष्मीकांता चावला

वर्ष 2022 में पंजाब समेत गोआ, मणिपुर, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की विधानसभाओं के चुनाव हैं। सत्तापक्ष और विपक्ष ऐड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। इसके लिए दलबदल की मार्केट पूरे जोर से चल रही है। एक भी पार्टी ऐसी नहीं, जिसमें आया राम-गया राम न हों। जो लोग अपनी पार्टी से ही वफादारी नहीं निभा रहे, वे जनता से क्या निभाएंगे। इसके साथ ही चुनाव पूर्व वर्ष में हर पार्टी मुफ्तखोरी का प्रलोभन भी जनता को दे रही है।
याद होगा कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने स्कूली छात्राओं को साइकिलें बांटी थी और वे इलेक्शन जीत गए। पंजाब की बादल सरकार ने भी यही ढंग अपनाया और स्कूलों में साइकिल बांट दिए, पर इसका असर भी केवल एक बार ही रहा और अकाली दल हार गया। वैसे तो मतदाताओं को ही यह समझना चाहिए कि यह मुफ्तखोरी की घोषणाएं-स्कूटर, साइकिल, स्मार्टफोन, लैपटाप, बिजली सस्ती या मुफ्त, घर-घर नौकरी आदि के चुनावी सब्जबाग दिखाकर मतदाताओं को भ्रमित किया जा रहा है।

दुख यह है कि अभी तक आम नागरिक यह समझ ही नहीं पाया कि मुफ्त देने की सरकारी घोषणा वास्तव में स्वाभिमानी नागरिकों का अपमान है। याद रखना होगा कि 2016 में कांग्रेस पार्टी ने पंजाब के लोगों को घर-घर नौकरी का वचन दिया था। यह कितना पूरा हुआ, हम सभी जानते हैं। यह ठीक है कि स्मार्टफोन कुछ मात्रा में बांटे गए, पर नौकरी देना तो दूर की बात, जो रोजगार मेले लगाए, उसमें शिक्षित जवानी को आठ-दस हजार रुपये महीने पर खरीदा गया। इन नौजवानों के घावों पर नमक छिडक़ने का काम पंजाब के एक वर्तमान मंत्री ने कर दिया और कहा कि बेकारी के जमाने में आठ-दस हजार रुपये मिल जाना भी छोटी बात नहीं, सरकार का धन्यवाद करना चाहिए।

अब तो पंजाब के नये मुख्यमंत्री चन्नी एक लाख बेरोजगारों को रोजगार देने की घोषणा कर चुके हैं। ऐसा कौन-सा अलादीन का चिराग है इस सरकार के पास जो 120 दिन के कार्यकाल में एक लाख लोगों को नौकरी देंगे, पूरे वेतन पर देंगे। हर रोज टीवी चैनलों पर हम देख रहे हैं कि अध्यापक पूरा वेतन मांगते हैं तो उन्हें लाठियां पड़ती हैं। बेरोजगार नौकरी मांगने के लिए इन मंत्रियों के दरवाजों पर जाते हैं तो पुलिस मंत्रियों की सुरक्षा के नाम पर बुरी तरह पीट देती है। राजनीतिक दल केवल वार-पलटवार, आरोप-प्रत्यारोप ही कर रहे हैं।

एक आम नागरिक जिसे सरकार ठेके पर रखकर दस-बारह घंटे से भी ज्यादा प्रतिदिन काम लेकर सात हजार से लेकर नौ हजार तक वेतन देती है, वो घर का आटा-नमक कैसे पूरा करेगा, इसकी किसी को चिंता नहीं। सीधी बात है कि अधिकतर जनप्रतिनिधि धनवान हैं और जो अधिक धनवान नहीं, वह विधायक या सांसद बनते ही धनपति हो जाते हैं। हम जानते हैं कि हमारी लोकसभा में 90 प्रतिशत सांसद करोड़पति हैं। राज्यसभा की तो बात ही छोडि़ए, वहां तो चार हजार करोड़ तक की संपत्ति के स्वामी भी राज्यसभा की शोभा बढ़ा रहे हैं।

आजकल पंजाब में क्या चल रहा है? कोई बिजली मुफ्त करने की बात कह रहा है और नये मुख्यमंत्री चन्नी ने तो जिन लोगों ने पिछले कुछ वर्षों से बिजली का बिल ही सरकार को नहीं दिया था, उन सबका बकाया माफ कर दिया अर्थात जो सरकारी भाषा में डिफाल्टर थे, उनको पुरस्कार दे दिया। दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने तो घोषणा कर दी कि उनकी सरकार बनते ही पंजाब की 18 वर्ष की आयु से अधिक महिलाओं को एक हजार रुपया प्रतिमाह दिया जाएगा। सरकारी कोष इस तरह लुटा देना आमजन के साथ न्याय नहीं। अभी तक दिल्ली के मुख्यमंत्री यह उत्तर नहीं दे पाए कि जो महिला लाखों रुपये कमा रही है या करोड़पति परिवार की बहू—बेटी है, उन सबको वह एक हजार देंगे।
सत्ता पक्ष के पार्षद, विधायक या फिर महिला पार्षदों के पति इस प्रकार चौक—चौराहों में सरकारी राशन बांटते हैं जैसे वे अपनी कमाई से कोई दान—पुण्य का बड़ा काम कर रहे हैं। देश के मतदाताओं को जागरूक होकर एक स्वर में सरकार से यह मांग करनी चाहिए कि हमें भिक्षा नहीं, अधिकार दो। महंगाई नियंत्रित करो और अन्य किसी भी प्रकार की सब्सिडी बेशक बंद कर दें, लेकिन शिक्षा, चिकित्सा और पढ़ाई हर व्यक्ति की पहुंच में हो जाए। अच्छा हो देश की संसद यह कानून बनाए कि जिस तरह कांट्रेक्ट एक्ट में कांट्रेक्ट का पालन न करने वाले को दंड मिलता है, उसी तरह चुनावी वायदे पूरे न करने वाले चुनाव लडऩे के अयोग्य हो जाएं।

स्वतंत्रता के 75 वर्ष बीत रहे हैं। देश के प्रधानमंत्री के नेतृत्व में अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है, पर देश की जनता अमृत तो दूर, साफ पानी के लिए भी तरस रही है। अगर राजनेताओं के वादे पूरे हो जाते तो हमारे देश का अमृत महोत्सव भी सार्थक हो जाता। वैसे जितना शोषण, भ्रष्टाचार आज पंजाब में और देश में है, उसका एक ही समाधान है कि मतदाता जागरूक होकर मतदान करें।

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