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स्मार्ट फोन वाले जीव

सुमित प्रताप सिंह

जब भी मेट्रो में यात्रा करने का सुअवसर प्राप्त होता है तो मेट्रो में अपने-अपने स्मार्ट फोन में खोए हुए जीवों को देखकर इस भोले से मन-मस्तिष्क में एक स्मार्ट-सा विचार आता है कि ये संसार जाति, धर्म, पंथ, अमीर-गरीब व अच्छे-बुरों के अतिरिक्त दो और वर्गों क्रमश: स्मार्ट फोन वाले जीवों व बिना स्मार्ट फोन वाले जीवों के बीच भी बंटा हुआ है। स्मार्ट फोन वाले जीवों के बारे में बात करें तो उनका संसार स्मार्ट फोन से आरंभ होकर अंतत: उसी में समाप्त हो जाता है। स्मार्ट फोन में डाउनलोड किए गए एप्स ने ऐसे चक्रव्यूह का निर्माण किया है कि उसमें घुसने के बाद फंसकर जाने कितने अभिमन्यु बेमौत दम तोड़ देते हैं। किसी पर कोई मुसीबत आ जाए, किसी का एक्सीडेंट हो जाए या फिर किसी के साथ कोई और अनहोनी घट जाए तो सबसे पहले उस स्थान पर स्मार्ट फोन धारी जीव प्रकट होता है और अपने स्मार्ट फोन से उस घटना-दुर्घटना को बड़े ही स्मार्ट तरीके से फिल्मा कर सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्मों पर वायरल कर देता है तथा पीडि़त व्यक्ति को बिना स्मार्ट फोन वालों के हवाले कर वहां से नौ दो ग्यारह हो जाता है। स्मार्ट फोन वाले जीवों की स्मार्ट फोन में दिन-रात डूबी आंखें व उसमें सदैव झुकी रहने वाली गर्दनें भविष्य में कमजोर आंखों की समस्या, मानसिक विक्षिप्तता व स्पॉन्डिलाइटिस इत्यादि रोगों को लघु उद्योग से बड़ी छलांग मारकर बृहत उद्योग की श्रेणी की सूची में सम्मिलित होने को संघर्षरत हैं।

कितने सौभाग्यशाली हैं वे जीव, जिनके पास स्मार्ट फोन नहीं है। बिना स्मार्ट फोन वाले जीवों की श्रेणी में अप्रत्यक्ष रूप से वे जीव भी आ जाते हैं, जो स्मार्ट फोन तो रखते हैं लेकिन उसका प्रयोग संयमित रूप से ही करते हैं। उनका जीवन वास्तविकता की पटरी पर दौड़ लगाते हुए बीतता है। एक-दूसरे के सुख-दु:ख को जानना, समझना व समय आने पर एक-दूसरे के काम आना अब इस जग में बिना स्मार्ट फोन वाले जीवों के जिम्मे ही है। स्मार्ट फोन वाले जीवों और बिना स्मार्ट फोन वाले जीवों में एक अंतिम फर्क है ये है कि बिना स्मार्ट फोन वाले जीवों का सारा जीवन चैन से कट जाता है और स्मार्ट फोन वाले जीवों के बगल में चार्ज हो रहा उनका स्मार्ट फोन एक दिन चार्ज होते समय ही भारी विस्फोट के साथ फट जाता है।

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