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बचत को कवच

निश्चित रूप से नौकरीपेशा और मध्यम-निम्न आय वर्ग के लोगों के लिये वह संकटभरा वक्त होता है, जब उन्हें पता लगता है कि जिस बैंक में उनके जीवन भर के खून-पसीने की कमाई जमा थी, वह डूब गया। ऐसी खबरें मीडिया में आने पर खाताधारकों में अफरा-तरफी मच जाती थी। अब तक कुल रकम पर जो क्षतिपूर्ति हेतु एक लाख रुपया मिलता भी था, उसे पाने में सालों बैंकों व सरकारी दफ्तरों के धक्के खाने पड़ते थे। लेकिन रविवार को विज्ञान भवन में आयोजित कार्यक्रम ‘डिपॉजिटर्स फर्स्ट : पांच लाख रुपये तक समयबद्ध जमा राशि बीमा भुगतान गारंटी’ में प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि अब किसी बैंक के डूबने की स्थिति में खाताधारक को कुल जमा राशि की तुलना में पांच लाख रुपये तक दिया जायेगा। जिसे डिपॉजिट इंश्योरेंस क्रेडिट गारंटी कॉर्पोरेशन द्वारा बैंक डूबने के नब्बे दिन के भीतर खाताधारक को लौटाया जायेगा। दरअसल, सरकार ने वर्ष 2021 के बजट में इस प्रस्ताव की घोषणा की थी, जिसे अब क्रियान्वित किया गया। सरकार का दावा है कि अब तक इस मद में खाताधारकों को 1300 करोड़ का भुगतान किया जा चुका है। दरअसल, इस योजना के तहत राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के सभी सहकारी बैंकों के खाते भी शामिल होंगे। योजना में बीमे के अंतर्गत जमा खाते, फिक्स्ड डिपॉजिट, चालू खाते और रेकरिंग डिपॉजिट भी शामिल हैं। निस्संदेह, मुश्किल वक्त के लिये अपनी जमा-पूंजी बैंकों के हवाला करने वाले लोगों को बैंकिंग व्यवस्था में भरोसा बढ़ेगा।

सरकार का दावा है इस योजना से 98 फीसदी खाताधारकों के खाते सुरक्षित हो चुके हैं। निस्संदेह यह सरकार की अच्छी पहल है क्योंकि कुल रकम में से पांच लाख तो कम से कम खाताधारकों को वापस मिलेंगे। अब तक देश के कुल 17 बैंक अपने खाताधारकों के पैसे लौटाने में विफल रहे थे। अच्छी बात यह है कि बीमित राशि लोगों को तीन माह के भीतर देने की गारंटी दी गई है। सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि बैंकों के सिस्टम में पारदर्शिता लायी जाये। केंद्रीय बैंक व एजेंसियां बैंकों की संदिग्ध कार्यप्रणाली पर नजर रखें। अब आरबीआई सहकारी बैंकों की कार्यप्रणाली की भी देखरेख करेगा। देश में जनधन व अन्य खाते खुलने से बड़ी संख्या में लोगों की बैंकों में भागीदारी बढ़ी है। विमुद्रीकरण के बाद लोग घरों के बजाय बैंकों में पैसा रखने लगे हैं। यदि बैंकों में भी उनका पैसा सुरक्षित न रहे तो वे कहां जायेंगे। सुखद है कि जनधन खाते खुलने और सरकारी योजनाओं की राशि सीधे बैंक खातों में जाने से करीब अस्सी फीसदी महिलाओं के बैंकों में खाते खुल चुके हैं। यहां तक मुद्रा योजना की सत्तर फीसदी लाभार्थी भी महिलाएं ही हैं। इसके अलावा बैंकों से जुड़ी अन्य समस्याओं का भी समय रहते निराकरण, बैंकिंग व्यवस्था में भरोसा बढ़ाने के लिये हो। समस्या के जटिल होने से पहले ही नीतिगत फैसले से सुधार के प्रयास होने चाहिए क्योंकि आम लोगों की बैंकिंग व्यवस्था में भागीदारी तेजी से बढ़ी है।

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