निस्संदेह, महंगाई मध्यम व निम्न वर्ग की कमर तोड़ रही है, जिसके चलते इस मुद्दे पर राजनीतिक दलों की संवेदनशीलता भी सवालिया घेरे में रही है। सत्तापक्ष तो महंगाई को लेकर तमाम तर्क देता रहा है, लेकिन आम धारणा है कि विपक्ष ने एकजुट होकर महंगाई के मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया। शायद इसी सोच को लेकर जयपुर में रविवार को आयोजित ‘महंगाई पर महारैली’ के जरिये कांग्रेस ने जनता की नब्ज पर हाथ रखने का प्रयास किया। पूरा गांधी परिवार पीएम मोदी व केंद्र सरकार पर महंगाई के मुद्दे पर जमकर बरसा। रैली में सोनिया गांधी की चुप्पी भी राहुल व प्रियंका के समर्थन में थी। लेकिन विडंबना ही है कि महंगाई हटाओ महारैली के जरिये राहुल गांधी का हिंदू बनाम हिंदुत्ववादी का उद्घोष पूरे देश में विमर्श का नया मुद्दा बन गया और महंगाई का मुद्दा हाशिये पर चला गया। जयपुर के विद्याधर नगर स्टेडियम में आयोजित इस रैली में राहुल गांधी ने अपने भाषण में बताते हैं कि महंगाई शब्द का प्रयोग सिर्फ एक बार किया जबकि 35 बार हिंदू और 26 बार हिंदुत्ववादी शब्द का प्रयोग किया।
लेकिन कांग्रेस की इस रैली से कई साफ संदेश सामने आये। ऐसे वक्त में जब केंद्र सरकार ने येन-केन-प्रकारेण किसान आंदोलन का पटाक्षेप कर दिया है तो आने वाले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस समेत विपक्ष महंगाई के मुद्दे से ही चुनावी वैतरणी पार करने की कोशिश करेगा। जयपुर रैली से महंगाई के खिलाफ बिगुल बजाकर कांग्रेस ने साफ कर दिया कि वह पांच राज्यों के आसन्न चुनावों में महंगाई के मुद्दे को लेकर ही जनता के बीच जायेगी। वहीं सोनिया गांधी ने रैली में भाषण न देकर राहुल को आगे लाने का संदेश दे दिया। यदि सोनिया बोलती तो निस्संदेह राहुल के भाषण को कम तरजीह मिलती। अगले साल होने वाले पार्टी संगठन के चुनाव में राहुल को कमान मिलना लगभग तय नजर आ रहा है। प्रियंका गांधी ने भी महंगाई के मुद्दे पर लडऩे के लिये राहुल गांधी को आगे किया।
कोरोना संकट से उबर रहे देश में आम आदमी के आय के स्रोतों का संकुचन अभी तक सामान्य नहीं हो पाया है। कई उद्योगों व सेवा क्षेत्र में करोड़ों लोगों ने रोजगार खोये या उनकी आय कम हुई। ऐसे में आये दिन बढ़ती महंगाई बेहद कष्टदायक है। गरीब आदमी की थाली से सब्जी गायब होने लगी है। आम आदमी के घर में आम जरूरतों के लिये प्रयोग होने वाला सरसों का तेल दो सौ रुपये लीटर से अधिक होना बेहद चौंकाने वाला है। हाल ही के दिनों में टमाटर का सौ रुपये तक बिकना बेहद परेशान करने वाला रहा। इतना ही नहीं, जाड़ों के मौसम में लोकप्रिय सब्जियां मसलन गोभी व मटर के दाम भी सामान्य नहीं रहे हैं। प्याज के भाव भी चढ़ते-उतरते रहते हैं। वहीं पेट्रोल-डीजल के दाम कई स्थानों पर सौ को पार करने का भी महंगाई पर खासा असर पड़ा है। जाहिर-सी बात है पेट्रोलियम पदार्थों के भाव में तेजी आने से मालभाड़ा महंगा होकर हर चीज के दाम को बढ़ा देता है। हालांकि, सरकार ने तेल के दामों में कुछ कमी की और कुछ राज्यों ने वैट घटाकर खरीदारों को राहत भी दी, लेकिन यह राहत दीर्घकालीन व बड़ी नहीं है। टमाटर को लेकर कहा जा रहा है कि मानसूनी बारिश के देर तक चलने व खेतों में ज्यादा पानी भरे रहने से टमाटर की अधिकांश फसल बर्बाद होने से इसके दामों में अप्रत्याशित तेजी आई। भारत में जहां टमाटर का उत्पादन ज्यादा है तो खपत भी ज्यादा है।
भारत दुनिया में चीन के बाद टमाटरों का दूसरा बड़ा उत्पादक देश है। लेकिन हाल के वर्षों में बड़ी मात्रा में टमाटर का उपयोग खाद्य प्रसंस्करण उद्योग द्वारा किया जा रहा है, जिसकी आपूर्ति से बाजार में टमाटर की सप्लाई प्रभावित होती है। साथ ही यहां यह भी विचारणीय है कि क्या टमाटर उत्पादकों को उनकी मेहनत के अनुरूप दाम मिल रहा है? बहरहाल, महंगाई पर राजनीतिक दलों की उदासीनता आम आदमी को परेशान जरूर करती है।