Tuesday, December 3, 2024
Home ब्लॉग रोजगार व संप्रभुता हेतु संरक्षणवाद जरूरी

रोजगार व संप्रभुता हेतु संरक्षणवाद जरूरी

भरत झुनझुनवाला

बीते वर्ष में अपने निर्यातों में 10 अरब डालर की वृद्धि हुई है तो आयातों में 21 अरब डालर की। सच यह है कि निर्यात बढ़ाने के प्रयास में हमारे आयात बढ़ रहे हैं और हम दबते जा रहे हैं। सरकार ने पिछले वर्ष इस समस्या का संज्ञान लेते हुए चीन के की एप जैसे जूम और कैम स्कैनर पर और रक्षा से सम्बन्धित लगभग 100 वस्तुओं पर प्रतिबन्ध लगाया था। कोट, पैंट, ज्यूलरी, प्लास्टिक, केमिकल, चमड़ा इत्यादि पर आयात कर बढ़ाए थे। लेकिन ये कदम पर्याप्त सिद्ध नहीं हुए हैं। हमारे आयात दिनोंदिन बढ़ते ही जा रहे हैं। कारण यह है कि हमने खुले व्यापार को अपना रखा है।

अर्थव्यवस्था को चलाने के दो माडल हैं। एक यह कि हम खुले व्यापार को अपनाएं और अपने माल का निर्यात करने का प्रयास करें। विदेशी माल आयात करने की छूट दें ताकि हमारे निर्यात क्षेत्र में रोजगार उत्पन्न हो सके और हमारे उपभोक्ता को सस्ता विदेशी माल उपलब्ध हो। इस माडल की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि हम कितना निर्यात कर पाते हैं। सस्ते आयातों का पेमेंट करने के लिए निर्यात से डॉलर अर्जित करना जरूरी होता है। पिछले वर्ष का अनुभव प्रमाणित करता है कि खुले व्यापार के माडल से हमें सफलता नहीं मिल रही है। निर्यातों में वृद्धि कम और आयातों में वृद्धि अधिक हो रही है। इसलिए हमें दूसरे संरक्षणवाद के माडल को अपनाना चाहिए।

इस माडल में हम केवल अति जरूरी माल के आयात को छूट देते हैं। शेष माल पर भारी आयात कर लगा देते हैं, जिससे कि अधिकाधिक माल का उत्पादन अपने देश में हो। संरक्षणवाद का लाभ यह है कि हम अधिकतर माल में आत्मनिर्भर हो जाते हैं। हमारी आर्थिक संप्रभुता की रक्षा होती है। नुकसान यह है कि हमें विदेशों में बना सस्ता माल नहीं मिलता। दूसरा नुकसान है कि हमारे उद्यमी अकुशल उत्पादन में लिप्त हो जाते हैं। विदेशी माल पर आयात कर अधिक होने से आयातित माल महंगा पड़ता है और हमारे उद्यमी मुनाफाखोरी करते हैं या अकुशल उत्पादन करते हैं क्योंकि उन्हें सस्ते विदेशी माल से प्रतिस्पर्धा करने की जरूरत नहीं रह जाती। इस तथ्य के बावजूद हमें संरक्षणवाद को अपनाना चाहिए।

मान लें कि संरक्षणवाद को अपनाने से अपने देश में अकुशल उत्पादन होता है तो भी इस अकुशल उत्पादन में हमारे श्रमिकों को रोजगार मिलता ही है। उनकी क्रय शक्ति में वृद्धि होती है। अत: प्रश्न यह है कि हम अपने श्रमिकों को रोजगार के साथ महंगा घरेलू माल परोसेंगे या बेरोजगारी के साथ सस्ता विदेशी माल? यदि हम खुले व्यापार को अपनाते हैं और सस्ता विदेशी माल अपने देश में आता है तो हमारे उद्योग बंद हो जाते हैं। हमारे श्रमिक बेरोजगार हो जाते हैं। विदेश का बना सस्ता माल हमारी दुकानों में उपलब्ध तो होता है लेकिन श्रमिक की जेब में नकद नहीं होता कि वह उस माल को खरीद सके। सस्ता माल उपलब्ध कराकर उन्हें बेरोजगारी के साथ भुखमरी की कगार पर लाने की तुलना में रोजगार के साथ महंगा माल उपलब्ध कराना उत्तम है। तब माल कम भी मिलेगा तो भी वे कुछ खपत तो कर ही सकेंगे। भूखे नहीं मरेंगे।

खुले व्यापार का सिद्धांत है कि हर देश उस माल का उत्पादन करेगा, जिसे वह कुशलतापूर्वक बना सकता है। जैसे भारत गलीचे का कुशल उत्पादन करे और चीन बिजली के बल्ब का कुशल उत्पादन करे। भारत सस्ते गलीचों का निर्यात करे और चीन सस्ते बल्ब का निर्यात करे। तब भारत में गलीचे के उत्पादन में रोजगार बनेंगे और उस आय से भारतीय नागरिक चीन के सस्ते बल्ब को खरीद सकेंगे। इसी प्रकार चीन के नागरिक को बल्ब के उत्पादन में रोजगार मिलेंगे और उस आय से वे भारत में बने सस्ते गलीचे को खरीद सकेंगे।

यह सिद्धांत सही है लेकिन यह गैर आवश्यक माल मात्र पर लागू होता है। जैसे मान लीजिये हम स्टील का आयात चीन से करने लगें तब हम अपने देश में बंदूक, पनडुब्बियां, हवाई जहाज इत्यादि का उत्पादन भी नहीं कर सकेंगे क्योंकि इनके उत्पादन के लिए हमें स्टील चाहिए, जिसे प्राप्त करने के लिए हम चीन पर आश्रित हो जायेंगे। इसलिए अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिए जरूरी है कि हम आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन अपने देश में ही करें, यह चाहे महंगा ही क्यों न पड़े। जैसे यदि देश में उत्पादित स्टील का दाम 50 रुपये प्रति किलो है और विदेश में उत्पादित स्टील का दाम 40 रुपयेे प्रति किलो है तो हम विदेशी स्टील पर 10 रुपये का संप्रभुता अधिभार लगा सकते हैं। चूंकि हमारे लिए अपने ही देश में स्टील का उत्पादन करना आवश्यक है। तब अपने देश में बने स्टील और आयातित स्टील दोनों का दाम 50 रुपये प्रति किलो हो जाएगा और अपने देश में स्टील का उत्पादन हो सकेगा। फिर हम चीन पर आश्रित नहीं होंगे।

संरक्षणवाद के विरोध में तर्क 1950 से 1990 की हमारी दुर्गति का दिया जाता है। यह सही है कि उस समय हमने संरक्षणवाद को अपनाया और और अपना देश वांछित प्रगति नहीं कर सका लेकिन इसका कारण केवल संरक्षणवाद को ही नहीं ठहराया जा सकता है। सही बात यह है कि यदि हम संरक्षणवाद के साथ अपने घरेलू उद्यमियों के बीच प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहन दें तो आपसी प्रतिस्पर्धा में ये स्वयं कुशल उत्पादन करने लगेंगे। फिर उद्यमी कुशल भी हो जायेंगे और हम निर्यातों का सामना भी कर सकेंगे।

आश्चर्य की बात है कि इस तथ्य को हमारे सरकारी अधिकारी क्यों नहीं समझते? अधिकांश अधिकारियों और नेताओं के संतानें बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में कार्य करती हैं। सेवानिवृत्ति के बाद ये स्वयं विश्व बैंक की सलाहकारी करने को उत्सुक रहते हैं। इसलिए इनकी मानसिकता ही बन जाती है कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के हितों को साधें और वे अनजाने में ही देश हित की ऐसी गलत परिभाषा कर बैठते हैं जिसके अंतर्गत हम आयातों पर निर्भर होते जा रहे हैं और हमारे नागरिक बेरोजगार होते जा रहे हैं।

RELATED ARTICLES

18 जनवरी यादगार दिवस पर विशेष

परमात्म अनुभूति कराते थे ब्रह्मा बाबा! डा0 श्रीगोपालनारसन एडवोकेट ब्रहमाबाबा जिनका वास्तविक नाम दादा लेखराज था,ने देश ही नही दुनिया को ईश्वरीय अनुभूति का बोध कराया।...

बिना नक्शे-कैलेंडर के भागता वक्त

शमीम शर्मा आज मेरे ज़हन में उस नौजवान की छवि उभर रही है जो सडक़ किनारे नक्शे और कैलेंडरों के बंडल लिये बैठा रहा करता।...

मौसम की तल्खी

कहते हैं आमतौर पर मुंबई में लोग दिसंबर के महीने में पसीना पोंछते नजर आते थे, लेकिन इस बार मौसम ने ऐसी करवट ली...

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -

Latest Post

शिक्षा जीवन का आधार, मां हमारी जीवन की पहली शिक्षकः ऋतु खण्डूडी भूषण

कोटद्वार। ऋतु खण्डूडी भूषण ने कोटद्वार हरिद्वार मार्ग पर स्थित आदर्श विद्या निकेतन पब्लिक स्कूल ने मां को समर्पित वार्षिकोत्सव उल्लास कार्यक्रम में पहुंचकर...

बच्चे हैं समाज के सूद, उचित पोषण इनका मौलिक अधिकारः डीएम

देहरादून। जिलाधिकारी सविन बंसल ने सुदोवाला अवस्थित अक्षय पात्र रसोई का निरीक्षण कर, रसोई में खाना बनाए जाने की प्रक्रिया परखी। इस दौरान जिलाधिकारी...

उत्तराखंड के बहुआयामी पर्यटन और उपलब्धियों को अपने राष्ट्रव्यापी नेटवर्क में साझा करेगा पीआरएसआई

देहरादून। पब्लिक रिलेशन सोसाइटी ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ अजीत पाठक ने सूचना महानिदेशक श्री बंसीधर तिवारी से शिष्टाचार भेंट कर पीआरएसआई के...

राज्य स्तरीय खेल महाकुंभ के पदक विजेताओं को भी मिलेगा खेल आरक्षण का लाभः मुख्यमंत्री

देहरादून। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि राज्य स्तरीय खेल महाकुंभ के पदक विजेता खिलाड़ियों को भी सीधी भर्ती के पदों पर अन्य...

प्रसिद्ध फिल्म निर्माता-निर्देशक प्रकाश झा ने सीम धामी से की भेंट

देहरादून। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से रविवार को मुख्यमंत्री कैम्प कार्यालय में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता एवं प्रसिद्ध फिल्म निर्माता-निर्देशक प्रकाश झा ने भेंट...

सीएम ने 50वें खलंगा मेले में प्रतिभाग किया, मेला समिति को पांच लाख रु. देने की घोषणा

देहरादून। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने रविवार को सागरताल नालापानी, देहरादून में बलभद्र खलंगा विकास समिति द्वारा आयोजित 50वाँ खलंगा मेला में प्रतिभाग किया।...

केदारनाथ क्षेत्र की नवनिर्वाचित विधायक आशा नौटियाल ने विधानसभा सभा अध्यक्ष से की भेंट

देहरादून। उत्तराखंड विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खण्डूडी भूषण से देहरादून के यमुना कॉलोनी स्थित उनके शासकीय आवास पर केदारनाथ विधानसभा क्षेत्र से नवनिर्वाचित विधायक आशा...

आईआईटी रुड़की में हुआ युवा संगम-5 का उद्घाटन

रुड़की। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की (आईआईटी रुड़की) ने एक भारत श्रेष्ठ भारत कार्यक्रम के तहत शिक्षा मंत्रालय की प्रमुख पहल, युवा संगम के पांचवें...

चिकित्सालय में मरीज एवं जनमानस से दुव्र्यवहार और लापरवाही नहीं होगी क्षम्यः डीएम

देहरादून। जिलाधिकारी सविन बंसल ने उप जिला चिकित्सालय विकासनगर का औचक निरीक्षण किया। ओपीडी फार्मेसी टीकाकरण कक्ष का किया निरीक्षण पैथोलॉजी एक्स-रे कक्ष की...