भारतीय पराग और महक अमेरिका में
अरुण नैथानी
दुनिया की चोटी की टेक्नोलॉजी कंपनियों में भारतीय प्रतिभाओं के वर्चस्व की पराकाष्ठा नजर आती है। गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, अडोबी, आईबीएम, पालो ऑल्टो, नेटवर्क्स और ट्विटर के सीईओ भारत में पले-बढ़े हैं और अमेरिका में जाकर महके हैं। जो यह भी बताता है कि हम अपनी प्रतिभाओं को सहेजने का वातावरण विकसित नहीं कर पाये हैं। उन्हें वह वातावरण नहीं दे पाये, जिसमें वे अपनी प्रतिभा का विकास कर सकें और अपने सपनों में रंग भर सकें। इस कड़ी में नया नाम पराग अग्रवाल का है जो दुनिया में धूम मचाने वाली टेक्नोलॉजी कंपनी ट्विटर के सीईओ बने हैं।
कितनी महत्वपूर्ण बात है कि पराग अग्रवाल ट्विटर के सह-संस्थापक और अब तक सीईओ रहे जैक डोर्सी का स्थान लेंगे, जिन्होंने पिछले दिनों इस पद से इस्तीफा दिया है। अजमेर मूल के और आईआईटी मुंबई की प्रतिभा पराग की मेधा से ट्विटर एक दशक से महक रहा है।
अगर भारतीय प्रतिभाएं अपने सपने पूरा करने यदि अमेरिका जाती हैं तो इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि वहां वह वातावरण है जो प्रतिभाओं की कद्र करता है। बड़े अधिकारी को लगता है कि उसके अधीनस्थ में प्रतिभा और योग्यता है तो उसके लिये स्थान छोडऩे का दमखम अमेरिकी लोगों में है। अन्यथा भारत में तमाम प्रतिभाएं घुटन, राजनीति व संकीर्णताओं के चलते दम तोड़ देती हैं। पराग अग्रवाल को नयी जिम्मेदारी सौंपते हुए जैक डोर्सी ने ट्वीट किया- ‘यह मेरे जाने का समय है। हमारी कंपनी के बोर्ड ने सारे विकल्प खंगालने के बाद सर्वसम्मति से पराग के नाम पर सहमति जतायी है। वे कंपनी व कंपनी की जरूरतों को काफी गहनता से समझते हैं। कंपनी के हर फैसले के पीछे पराग रहे हैं। वे बहुत उत्सुक, खोजबीन करने वाले, तार्किक, रचनात्मक, महत्वाकांक्षी, जागरूक और विनम्र हैं। वे दिल और आत्मा से टीम का नेतृत्व करते हैं। मैं उनसे रोज सीखता हूं। सीईओ के रूप में उन पर मैं भरोसा कर सकता हूं। मैं कंपनी के बोर्ड में रहकर पराग की मदद करूंगा। मैं पराग को नेतृत्व करने का मौका देना चाहता हूं।’
पराग अग्रवाल का दुनिया के बहुचर्चित सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर का सीईओ बनने से भारत में खासा उत्साह है और वे परंपरागत व सोशल मीडिया पर छाये हुए हैं। वे उन करोड़ों भारतीय युवाओं के लिये भी प्रेरणापुंज हैं जो टेक्नालॉजी के क्षेत्र में अपने सपनों में रंग भरना चाहते हैं।
लेकिन शिखर पर पहुंचना जितना कठिन होता है वहां टिके रहना और भी मुश्किल। छिद्रान्वेशियों ने उनके ग्यारह साल पुराने एक ट्वीट को ढूंढ़ निकाला, जिसमें उन्होंने किसी कॉमेडी शो के बाबत एक तार्किक टिप्पणी की थी। हालांकि, वे उस समय ट्विटर में नहीं थे और तभी उस टिप्पणी की वास्तविकता से बयां कर दिया था। लेकिन अब उस ट्वीट की बाल की खाल निकालकर पराग अग्रवाल और ट्विटर पर हमले बोले जा रहे हैं। उसकी अपनी सुविधा से व्याख्या की जा रही है। ट्वीट के तुरंत बाद ही पराग ने स्पष्ट कर दिया था कि यह बात कॉमेडियन आसिफ मांडवी ने डेली शो के दौरान कही थी, जिसे उन्होंने ट्वीट किया था। इस शो में काले लोगों के अधिकारों के बारे में बात हो रही थी। तब उन्होंने कहा था कि यदि वे मुस्लिम और चरमपंथियों के बीच अंतर नहीं करते तो मुझे गोरे लोगों और नस्लवादियों में फर्क क्यों करना चाहिए? वहीं एक ट्विटर यूजर सिराज हाशमी ने लिखा है कि स्पष्ट है कि पराग इस धारणा से सहमत हैं कि सभी मुस्लिम चरमपंथी नहीं होते और न ही सभी गोरे नस्लभेदी होते हैं।
बहरहाल, पराग अग्रवाल की कामयाबी चमत्कारिक और प्रेरणादायक है। अजमेर के एक सामान्य परिवार में जन्मे और मुंबई में पले-बढ़े पराग ने इस कामयाबी के लिये कड़ी मेहनत की। अजमेर के धान मंडी मोहल्ले में रहने वाले पराग पर अब धन बरस रहा है और उन्हें साढ़े सात करोड़ का वार्षिक पैकेज व अन्य सुविधाएं मिलेंगी। एक वक्त ऐसा था कि बीएमआरसी मुंबई में काम करने वाले उनके पिता रामगोपाल अग्रवाल के पास पराग के जन्म के समय पत्नी को प्राइवेट अस्पताल में भर्ती करने के पैसे नहीं थे। फिर उनका जन्म अजमेर के सरकारी अस्पताल जेएलएन में हुआ। उनकी मां एक शिक्षिका हैं। वे बताती हैं कि उसे अजमेर के व्यंजन, नमकीन व मिठाई बेहद पसंद है। वह मुंबई में आईआईटी की पढ़ाई के दौरान भी अजमेर से कढ़ी-पकोड़ी मंगवाया करते थे। निस्संदेह पराग की कामयाबी हर भारतीय के लिये प्रेरणा की मिसाल है कि यदि संकल्प हो तो मेहनत व लगन से हर मंजिल हासिल की जा सकती है। साथ ही यह हमारे नीति-नियंताओं के लिये भी आत्ममंथन का वक्त है कि क्यों हम अपनी प्रतिभाओं को सहेज नहीं पा रहे हैं। क्यों अपनी प्रतिभाओं को वह वातावरण नहीं दे पा रहे हैं कि वे अमेरिका में हासिल कामयाबी को भारत में दोहरा सकें। हाल ही में चीन ने पूरी दुनिया में कामयाबी की नई इबारत लिखने वाले चीनियों को स्वदेश वापसी के लिये आकर्षक प्रस्ताव दिये थे। क्या भारत सरकार भी इस दिशा में कोई गंभीर पहल करेगी ताकि देश की प्रतिभाएं देश के काम आ सकें। साथ ही प्रतिभा पलायन की प्रवृत्ति को रोका जा सके।