हिमालयी जड़ी बूटी व परम्परागत खेती विलुप्त नहीं होनी चाहिएः प्रोफेसर दिनेश भट्ट
देहरादून। हिमालय दिवस के अवसर पर अंतराष्ट्रीय पक्षी एवं पर्यावरण वैज्ञानिक प्रोफेसर दिनेश भट्ट ने पीपीटी के माध्यम से डीपीएस फेरूपुर में विद्यार्थियों को हिमालय की चोटियों, ताल तलैया तथा जैव विविधता का दिग्दर्शन कराया। कैलाश पर्वत, नंदा देवी, दूनागिरी, ऋषि पर्वत, एवरेस्ट, पंचोलीय झीलो में डल झील, पैंगोंग झील (जिस पर चीन ने अतिक्रमण किया है), रूपकुंड, हेमकुंड इत्यादिय वन्य जीवन में हिमालयन लेपर्ड, कस्तूरी मृग, हिंगुल, हिमालयन गोट, मोनाल, चकोर, खंजन, राजहंस, पपीहा इत्यादि य वनस्पति में बुरांश, जटामासी, तिमला , ब्रह्म कमल, इत्यादि के बारे में रुचिकर व सटीक जानकारी प्रदान की। प्रोफेसर भट्ट ने कहा कि हिमालयन वन्य जीवन में मानवीय दखल से मानव-वन्यजीव संघर्ष की स्थिति पैदा हो गई है। जंगली सूअर, बंदर, मोर इत्यादि फसलों को बेहद नुकसान पहुंचा रहे हैं एवं तेंदुआ तथा बाग मवेशियों व मनुष्यों पर आक्रमण कर रहे हैं जिससे हिमालय से लगातार पलायन हो रहा है। मनुष्य व वन्यजीवों के बीच संतुलन बनाने पर वैज्ञानिकों को कार्य करना होगा तभी पलायन रुकेगा व हिमालयी पर्यावरण बचेगा। प्रोफेसर भट्ट ने कहा कि चीड व साल के जंगलो में कंद, मूल व फल वाले वृक्ष लगाए जाने चाहिए ताकि जानवर जंगलो में ही सीमित रहे। फसलों के नुकसान पर वन विभाग द्वारा उचित मुआवजा दिया जाना चाहिए। हिमालयी जड़ी बूटी, दाल व धान की परम्परागत खेती होती रहनी चाहिए नहीं तो ये प्रजातिया विलुप्त हो जाएगी। किसी भी वनस्पति को विलुप्त नहीं होने देना चाहिए क्योकि न जाने कब किस वनस्पति से कोरोना, कैंसर, मानसिक आघात जैसी बीमारियों का इलाज हो सके।