देहरादून। संस्थापक एवं संचालक दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान आशुतोष महाराज ने कहा कि अध्यात्म, धर्म, ईश्वर, ज्ञान आदिविषयों पर गूढ़ व सारगर्भित अनेक ग्रंथों, शास्त्रों, वेद-उपनिषदों की रचना हुई। पर इनमें प्रयुक्त भाषा व शैली अति कठिन, परिष्कृत और विद्वत थी। इसलिए हमारे संत-महापुरुषों ने इन ग्रंथों के गूढ़ रहस्यों को जन साधारण तक सरल शैली में पहुँचाने का बीड़ा उठाया। ऐसे ही एक प्रसिद्ध मध्य कालीन संत हुए- कबीर साहब। इनकी शैली काफी सरल, सुबोध, स्पष्ट और सुगम थी। आज के लेखक, पत्रकार, उपदेशक जिस वैचारिक स्वातंत्र्य के समर्थक हैं, उसके अग्रदूत कबीर साहब ही थे। उनकी वाणी में अद्भुत ओजथा, एक ऐसी प्रखर प्रज्वलता थी कि लोग उससे अनछुए न रह सके। उन्होंने अत्यन्त व्यावहारिक उपमाएँ व उदाहरण देकर शास्त्रीय विषयों को साधारण जनता के समक्ष रखा। इसीलिए शिक्षित-अशिक्षित, युवा-प्रौढ़, सभी जन इन आध्यात्मिक रहस्यों को हृदयंगम कर सके। आइए, हम भी आज कबीर साहब के रत्नकोष से अपने लिए कुछ रत्न चुनें। पंछि खोज मीन को मारग। कहैं कबीर दोउ भारी। अपरमपार पार पर सोतिम। मूरति की बलिहारी।।अर्थात प्रकृति से परे आत्मा है, परमात्मा का स्वरूप है। उस स्वरूप पर मैं बलिहार जाता हूँ। उसे पाने के कई मार्गों में से, दो मार्ग हैं- विहंगम और मीन मार्ग। ये दोनों मार्ग हर अन्य मार्ग से श्रेष्ठ हैं। विहंग मार्ग- विहंग मार्ग के साधक शरीर, मन, बुद्धि आदि प्राकृतिक आधारों को त्याग कर ऊँची उड़ान भरते हैं। पूर्ण सद्गुरु से ब्रह्मज्ञान पाने के बाद, साधकों की चेतना गगनमंडल यानी शरीर में ही स्थित आकाशीय तत्त्व में विहार करती है।